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दत्तात्रेय रामचंद्र बेंद्रे

दत्तात्रेय रामचंद्र बेंद्रे
टोपणनाव अंबिकातनयदत्त
जन्म ३१ जानेवारी, इ.स. १८९६
धारवाड, ब्रिटिश भारत
मृत्यू २१ ऑक्टोबर, इ.स. १९८१
मुंबई, महाराष्ट्र
राष्ट्रीयत्व भारतीय
कार्यक्षेत्र अध्यापन, साहित्य, नाटक
भाषाकन्नड, मराठी
साहित्य प्रकार ललित साहित्य
वडील रामचंद्र बेंद्रे
आई अंबिका रामचंद्र बेंद्रे
पुरस्कारपद्मश्री पुरस्कार (इ.स. १९६८)
ज्ञानपीठ पुरस्कार (इ.स. १९७४)

डॉ. 'दत्तात्रेय रामचंद्र बेंद्रे (कन्नड: ದತ್ತಾತ್ರೇಯ ರಾಮಚಂದ್ರ ಬೇಂದ್ರೆ  ; रोमन लिपी: Dattatreya Ramachandra Bendre) (३१ जानेवारी, इ.स. १८९६; धारवाड, ब्रिटिश भारत - २१ ऑक्टोबर, इ.स. १९८१; मुंबई, महाराष्ट्र) हे कन्नड भाषेतील ख्यातनाम कवी होते. ते अंबिकातनयदत्त (अंबिकेचा पुत्र - दत्त) या टोपणनावाने लिहीत. कन्नड कविता व नाटकांशिवाय त्यानी मराठी साहित्यकृतींचे कन्नड भाषेत अनुवादही केले. नवोदय युगातील कन्नड काव्यातले त्यांचे योगदान पद्मश्री पुरस्कार (इ.स. १९६८) व ज्ञानपीठ पुरस्कार (इ.स. १९७४) देऊन गौरवण्यात आले.

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दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे का जन्म 13 जानेवारी, 1896 को धारवाड़, कर्नाटक में हुआ था। उनके बचपन का अधिकांश समय अभावों में व्यतीत हुआ था। जब वे मात्र बारह साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। इनके पिता और साथ ही दादा भी संस्कृत साहित्य के विद्वान व्यक्ति रहे थे। बेंद्रे ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा धारवाड़ में ही अपने चाचा की मदद से प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा सन 1913 में पास की। कन्नड़ भाषा के साथ-साथ अन्य कई भाषाओं के लिए भी अपना योगदान वाले दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे का 26 ऑक्टोबर, 1981 को महाराष्ट्र में निधन हो गया।

बेंद्रे ने अपने व्यवसायिक जीवन का प्रारम्भ 'विक्टोरिया हाई स्कूल', धारवाड़ से एक अध्यापक के रूप में किया। उन्होंने डी.ए.वी. कॉलेज', शोलापुर में 1944 से 1956 तक एक प्रोफ़ेसर के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद वे धारवाड़ में 'ऑल इण्डिया रेडियो' के सलाहकार भी बने।

दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे को उत्तराधिकार में दो संपदाएँ मिली थीं- 'संस्कारिता' और 'विद्याप्रेम'। 'बालकांड' शीर्षक कविता में उन्होंने अपने बाल्यकाल के दिनों की कुछ छवियाँ उकेरी हैं। आस-पास के किसी भी घर में संपन्नता न थी, फिर भी सब ओर एक जीवंतता थी। सभी प्रकृति के हास और रोष के साथ बंधे हुए थे। उसी के ऋतु-रंगों और पर्वों के साथ तालबद्ध थे। सामाजिक या पारिवारिक हर कार्य के साथ गीत जुड़े रहते थे। भक्त व भिखारी, नर्तकिए, स्वांगी और फेरी वाले तक अपने-अपने गीत लिए आते और इन गीतों की रंगारंग भाषा उनकी लयों की विविधता दत्तात्रेय रामचन्द्र के बाल मन पर छा जाती। 1932 में उनका प्रथम कविता संग्रह प्रकाशित होने से पहले ही समाज ने उन्हें अपने कवि के रूप में अंगिकार कर लिया था।

बेंद्रे सर्वाधिक प्रबुद्ध कन्नड़ लेखकों में से एक हैं। प्रांरभ से ही उनके आगे यह समस्या रही कि कीस प्रकार लोक समाज से मनोभावों का अपनी निजी बौद्धिक और आध्यात्मिक अनुभूतियों के साथ ताल-मेल बैठाया जाये। चिंतन और भावानुभूति, वस्तुपरक और आत्मपरक विषय, दोनों को अपनी रचनाओं में समायोजित करने के कारण बेंद्रे के काव्य को कुछ आलोचकों ने बौद्धिक काव्य का नाम दिया है। यह सच है कि उनकी कितनी ही कविताएँ बौद्धिक प्रगीत हैं, जबकि अन्य सबके विषय आध्यात्मिक हैं या रहस्यवादी। किंतु बेंद्रे न रोमांसवादी थे और न ही प्रतिबद्धता के कवि। वह एक संपूर्ण कवि थे, जिन्होंने युग के चेतना बिंदु के साथ स्वंय को जोड़ा। वह ऐसे कवि थे, जिन्हें भाषा व अभिव्यक्ति पर इतना अधिकार था कि जटिल विचाक-बोध और अनुभूति को भी प्रत्यक्ष कर दें।

'नाकुतंती', (चार तार) कवि दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे का एक कविता संग्रह है, जिसमें 44 कविताएँ हैं। इनमें से छ: का संबंध समकालीन लेखकों के प्रति उनके अपने नाते और जनतंत्र के वास्तविक अभिप्राय से है। शेष कविताओं में चिंतन और भावनाओं की एक विलक्षण संगति देखने को मिलती है।

'नाकुतंती' कविता में कवि के व्यक्तित्व के चारों पक्षों, मैं, तुम, वह और कल्पनाशील आत्मसत्ता का वर्णन हुआ है। ये चार पक्ष ही कवि के व्यक्तित्व का चौहरा ढांचा है, और चार के इसी मूलभूत तत्त्व को कवि ने अपनी अनुभूति के सभी आध्यात्मिक और सौंदर्यात्मक क्षेत्रों में पहचाना। कविता की सृजन-प्रक्रिया विषयक छ: सॉनेटों में बेंद्रे ने कविता के चार मूल तत्त्व गिनाए हैं- 'शब्द', 'अर्थ', 'लय' औऱ 'सहृदय'। संग्रह की एक और कविता में प्रभावपूर्ण बिंबों के द्वारा कवि ने वाकशक्ति के चारों रूपों- 'परा', 'पश्यंती', 'मध्यमा' और 'वैखरी' का वर्णन किया है। बेंद्रे की सौंदर्य विषयक परिकल्पना के भी चार पक्ष हैं- इंद्रियगत, कल्पनागत, बुद्घिगत और आदर्श, जो उनकी कविताओं में यथास्थान आए हैं।

श्लिषण

द.रा. बेंद्रे यांची मातृभाषा मराठी होती. त्यांनी १९१४ ते १९१८ या काळात पुण्यातील फर्ग्युसन कॉलेजातून पदवी घेतली. १९१६ साली बेंद्रे वीस वर्षांचे झाले या काळात त्यांची कविप्रतिभा कन्‍नड, मराठी, संस्कृत आणि इंग्रजी या चारही भाषांतून चौफेर वाहू लागली. १९१६ मध्ये बेंद्रे यांनी फर्ग्युसन कॉलेजात असताना मुरली नावाचे हस्तलिखित कन्नड-मराठी मित्रांच्या मदतीने दोन्ही भाषांत प्रसिद्ध केले. ही त्यांच्या साहित्यसेवेची सुरुवात मानली जाते.१९१८ मध्ये संस्कृत आणि इंग्रजी विषय घेऊन बेंद्रे बी.ए. झाले.

पुण्यात द.रा. बेंद्रे यांचे वास्तव्य त्यांचे काका बंडोपंत बेंद्रे यांचेकडे होते. तेथे राहून १९३३ ते १९३५ या दरम्यान्बेंद्रे एम.ए. झालेआणिपुढे १९४४ ते १९५६ अशी बारा वर्षे सोलापुरातील दयानंद महाविद्यालयात कानडीचे प्राध्यापक म्हणून कार्यरत झाले.

बेंद्रे यांची साहित्यसेवा

पुण्यात असताना बेंद्रे यांच्या पुढाकाराने १९१५ साली रविकिरण मंडल व शारदा मंडळ या नावाने मित्रमंडळांची स्थापना झाली. यामंडळाट्देश-विदेशांतील साहित्य्व काव्य यांची चर्चा, चिंतन व मनन होत असे.

पुढे धारवाडला आल्यावर बेंद्रे यांनी तेथेही ’गेळेवर गुंपू’ची म्हणजे मित्र मंडळाची स्थापना केली. कन्नड साहित्यामध्ये या मंडळाला आजही मानाचे स्थान आहे.

इ.स. १९५९ साली बेंद्रे यांनी म्हैसूर विद्यापीठात मराठी साहित्याविषयी तीन व्याख्याने दिली. अमृतानुभव, व चांगदेव पासष्टी यांचे कानडी भाषेत अनुवाद केले. मराठी लोकांना आधुनिक कन्‍नड काव्य, आणि विनोद यांचा परिचय करून दिला.

मराठी पुस्तके

  • के.व्ही. अय्यर यांच्या ’शांतता’ या कादंबरीचा मराठी अनुवाद (१९६५)
  • गीता जागरण (व्याख्यान, १९७६)
  • विठ्ठल पांडुरंग (कविता संग्रह, १९८४)
  • विठ्ठल संप्रदाय (व्याख्यान, १९६०)
  • संत महंतांचा पूर्ण शंभू विठ्ठल (तीन व्याख्याने, १९८०)
  • संवाद (कविता संग्रह, १९६५)

प्रकाशित साहित्य

साहित्यकृतीसाहित्यप्रकारप्रकाशनवर्ष (इ.स.)भाषा
अरळू मरळूकाव्यसंग्रहइ.स. १९५७कन्नड
उय्यालेकाव्यसंग्रहइ.स. १९३८कन्नड
कृष्णकुमारीकाव्यसंग्रहइ.स. १९२२कन्नड
गंगावतरणकाव्यसंग्रहइ.स. १९५१कन्नड
गरीकाव्यसंग्रहइ.स. १९३२कन्नड
चैत्यालयकाव्यसंग्रहइ.स. १९५७कन्नड
जीवलहरीकाव्यसंग्रहइ.स. १९५७कन्नड
नादलीलेकाव्यसंग्रहइ.स. १९४०कन्नड
पूर्ती मत्तु कामकस्तुरीकाव्यसंग्रहकन्नड
मेघदूतकाव्यसंग्रहइ.स. १९४३कन्नड
सखीगीतेकाव्यसंग्रहकन्नड
सूर्यपानकाव्यसंग्रहइ.स. १९५६कन्नड
हाडू पाडूकाव्यसंग्रहइ.स. १९४६कन्नड
हृदयसमुद्रकाव्यसंग्रहइ.स. १९५६कन्नड

सन्मान

बाह्य दुवे

  • "दत्तात्रेय रामचंद्र बेंद्रे यांचे लघुचरित्र" (इंग्लिश भाषेत).CS1 maint: unrecognized language (link)