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सेई शोनागुन Japanese author and court lady |
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विकिपीडिया |
स्थानिक भाषेतील नाव | 清少納言 |
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जन्म तारीख | इ.स. ९६६ (possibly) Heian-kyō |
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मृत्यू तारीख | इ.स. १०२५ (possibly) क्योतो |
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कार्य कालावधी (प्रारंभ) | |
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नागरिकत्व | |
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व्यवसाय | |
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नियोक्ता | |
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कार्यक्षेत्र | |
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मातृभाषा | |
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वडील | |
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भावंडे | - Kaishū
- Kiyohara no Munenobu
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अपत्य | - Tachibana no Norinaga
- Jōtōmoninkomanomyōbu
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वैवाहिक जोडीदार | - Tachibana no Norimitsu
- Fujiwara no Muneyo
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उल्लेखनीय कार्य | - Sei Shonagon-shu
- The Pillow Book
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सेई शोनागुन (जपानी: 清少納言) इ.स. ९६६ – १०१७/१०२५) ह्या एक जपानी लेखिका व कवयित्री होत्या. यांच्या जन्म-मृत्यूची ठिकाणे अज्ञातच आहेत. जपानच्या सम्राटाच्या राजदरबारात राणी सादाको हिची ती खास सेवेकरी होती. ह्या राजदरबारातच ‘सेई शोनागुन’ हे टोपणनाव तिला मिळाले आणि ह्याच नावाने लेखिका म्हणून तिची ओळख आहे. जपानच्या इतिहासातील हेआन कालखंडात (७९४-११८५) दोन श्रेष्ठ लेखिका होऊन गेल्या. एक, ⇨ गेंजी मोनोगातारी ही कादंबरी लिहिणारी मुरासाकी शिकिबू आणि दुसरी, माकुरानो-सोशि (इं. शी. ‘द पिलो बुक’) हा लेखन संग्रह लिहिणारी सेई शोनागुन.
‘द पिलो बुक’ वाचताना सेई शोनागुन ही जन्मजात लेखिका असली पाहिजे, अशी जाणीव निर्माण व्हावी, इतक्या सहजसुंदर शैलीत तिने तिच्या भोवतालच्या जगाबद्दलच्या आपल्या प्रतिक्रिया लेखनातून नोंदविल्या आहेत. त्याचप्रमाणे वेळोवेळी तिच्या मनात येऊन जाणारे विचारही प्रकट केलेले आहेत. तिच्या आवडीनिवडी, तिला लक्षवेधक वाटलेली नावे, नैसर्गिक घटना, पक्षी, पर्वत हे तिच्या विचारांना पुनःपुन्हा स्पर्श करणारे विषय आहेत. ‘द पिलो बुक’चा आरंभ चार ऋतूंवर तिने लिहिलेल्या एका परिच्छेदाने होतो. प्रत्येक ऋतूचे, त्या ऋतूमधील विविध दृश्यांचे शब्दचित्र ती अशा कौशल्याने उभे करते, की तो ऋतू निर्माण करणारी भाववृत्ती तिने नेमकी पकडल्याचा अनुभव वाचकांना येतो; तथापि तिच्या लेखनसंग्रहाचा सर्वांत मोठा भाग ज्या घटना तिने प्रत्यक्ष पाहिल्या वा ज्या घटनांत तिने प्रत्यक्ष सहभाग घेतला त्यांच्या निवेदनाचा आहे. काही पारंपरिक कथा तसेच काही काल्पनिक असे प्रसंगही ह्या संग्रहात आढळतात. ह्या लेखनसंग्रहात अखेरी अखेरीस लेखिकेने आपण लिहायला कशी सुरुवात केली हे सांगून ह्या लेखनसंग्रहाच्या नावाबद्दलही सूचकतेने काही लिहिले आहे. तिची एक आठवण अशी : एकदा राणी सादाकोचा भाऊ फुजिवारानो कोरेचिका (९७३-१०१०) ह्याने राजदरबारात कागदांचा गठ्ठा आणला. राणी सादाको हिने ह्या गठ्ठ्याचे काय करायचे, असे राजदरबारातील महिलांना विचारले; तेव्हा लेखिकेने सांगितले, की त्या गठ्ठ्याची उशी करणे योग्य होईल. ह्या घटनेतून असा तर्क करता येईल, की कागदाच्या, उशीसारख्या दिसणाऱ्या गठ्ठ्याचा उपयोग करून आपले लेखन करता येईल, असे तिला वाटले असावे आणि त्यातून तिच्या लेखनसंग्रहाचे शीर्षक तयार झाले असावे.