संघमित्रा
| राजकुमारी संघमित्रा | ||
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| राजकुमारी | ||
| राजधानी | पाटलीपुत्र | |
| पूर्ण नाव | संघमित्रा मौर्य | |
| जन्म | इ.स.पू. २८२ | |
| उज्जैन, मध्यप्रदेश | ||
| मृत्यू | इ.स.पू. २०३ | |
| अनुराधापुरा, श्रीलंका | ||
| वडील | सम्राट अशोक | |
| आई | महाराणी देवी | |
| राजघराणे | मौर्य वंश | |
| धर्म | बौद्ध धर्म | |
Indian Buddhist nun Staty av Sanghamitta. | |||
| माध्यमे अपभारण करा | |||
| स्थानिक भाषेतील नाव | संघमित्रा | ||
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| जन्म तारीख | इ.स. २८२ BC उज्जैन | ||
| मृत्यू तारीख | इ.स. २०३ BC अनुराधापुरा | ||
| नागरिकत्व | |||
| व्यवसाय | |||
| कुटुंब |
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| वडील | |||
| आई | |||
| भावंडे | |||
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| थेरवाद बौद्ध धर्म |
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संघमित्रा (पाली: संघमित्ता) (इ.स.पू. २८१ – इ.स.पू. २९२) ह्या सम्राट अशोक आणि त्यांची बौद्ध धर्मीय राणी देवी यांची मुलगी व एक अरहंत पद प्राप्त भिक्खुणी होत्या. महेंद्र या आपल्या भावासोबतच त्यांनीही मठवासी बौद्ध भिक्खुणींचे अनुयायीत्व पत्करले होते. पुढे बुद्धांच्या शिकवणीचा प्रसार करण्यासाठी ही दोन्ही भावंडे श्रीलंकेत गेली. श्रीलंकेत त्यांच्या बरोबर इतर भिक्खूणींनाही पाठवण्यात आलं.
अशोकांच्या बौद्ध धर्मीय पत्नीला आपल्या मुलीचे नाव बौद्ध धर्माशी निगडितच असावं असं वाटतं होतं आणि म्हणून तिने या मुलीचे नाव ‘संघमित्रा’ असं ठेवलं होतं. कलिंग लढाईनंतर सम्राट अशोकांनी जेव्हा आपल्या पत्नीसह बौद्ध धर्म स्विकारला तेव्हाच त्यांनी असा निर्णय घेतला होता की, गौतम बुद्धांची शिकवण आणि तत्त्वे यांचा प्रसार करण्यासाठी, प्रवचनांच्या माध्यमातून त्यांचा उपदेश लोकांपर्यंत पोहोचवण्यासाठी स्वतःच्या मुलांना आपल्यापासून दूर परप्रांतात पाठवायचे आणि त्यांनी हा निर्णय आमलात आणला. प्रत्येक हिवाळ्यातला सर्वात लहान दिवस, संघमित्राच्या सन्मानार्थ साजरा केला जातो.