शिलाहार वंश
शिलाहार साम्राज्य | |
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इ.स.नववे शतक - इ.स.तेरावे शतक | |
राजधानी | पुरी(दंडराजपुरी), वलीपट्टण(राजापुर), कोल्हापूर, पन्हाळा, वळीवडे |
राजे | उत्तर कोकणचा पहिला राजा-कपर्दी(८००-८२५) दक्षिण कोकणचा पहिला राजा-सणफुल्ल(७६५-७९५) कोल्हापूरचे पहिले राजा-जतिग प्रथम (९४०-९६०) |
भाषा | मराठी, [॥संस्कृत]], कन्नड धर्म = जैन अनुयायी |
क्षेत्रफळ | वर्ग किमी |
शिलाहार (शेलार) हे राष्ट्रकूट कालखंडातील उत्तर आणि दक्षिण कोकण, दक्षिण महाराष्ट्र या भागांतील मराठा राजघराणे होते. इ.स. ९ वे ते १३ वे शतक, म्हणजे चार शतके त्यांनी राज्य केले.
घराणी
शिलाहार वंशची तीन घराणी होती.
- उत्तर कोकणचे शिलाहार
- दक्षिण कोकणचे शिलाहार
- कोल्हापूरचे शिलाहार
ही तिन्ही घराणी स्वतःला विद्याधर जीमूतवाहन याचे वंशज मानत. जीमूतवाहनाने एका नागाला वाचवण्याकरिता आपला देह एका दगडावर (शिलेवर) बसून गरुडाला अर्पण केला होता. म्हणून त्याच्या वंशाला शिलाहार (शिलेवरील गरुडाचा आहार) असे म्हणतात, अशी आख्यायिका आहे.
उत्तर कोकणचे शिलाहार
उतर कोकणचे शिलाहार हे सध्याच्या ठाणे, मुंबई,रायगड या जिल्ह्यांवर राज्य करत होते. त्यांची राजधानी 'पुरी' म्हणजेच आताचे रायगड जिल्ह्यातील दंडराजपुरी होय. कपर्दी हा या घराण्याचा मूळ पुरुष होय. ठाणे जिल्ह्यातील प्रसिद्ध अंबरनाथ मंदिर याच राजघराण्यातील राजा छित्तराज याच्या कारकिर्दीत उभारले गेले. ठाणे शहरातील प्रसिद्ध कौपीनेश्वर मंदिरही याच राजघराण्याने उभारले.
उत्तर कोकणचे शिलाहार शासक
शासक | कालखंड (इ.स.) |
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कपर्दी प्रथम | ८००-८२५ |
पुल्लशक्ती | ८२५-८५० |
कपर्दी द्वितीय | ८५०-८८० |
वप्पूवन्न | ८८०-९१० |
झंझ | ९१०-९३० |
गोग्गीराज | ९३०-९४५ |
वज्जड प्रथम | ९४५-९६५ |
छद्वीदेव | ९६५-९७५ |
अपराजित | ९७५-१०१० |
वज्जड द्वितीय | १०१०-१०१५ |
अरीकेसरी | १०१५-१०२२ |
छित्तराज | १०२२-१०३५ |
नागार्जुन | १०३५-१०४५ |
मुम्मिनीराज | १०४५-१०७० |
अनंतदेव प्रथम | १०७०-११२७ |
अपरादित्य प्रथम | ११२७-११४८ |
हरीपालदेव | ११४८-११५५ |
मल्लिकार्जुन | ११५५-११७० |
अपरादित्य द्वितीय | ११७०-११९७ |
अनंतदेव द्वितीय | ११९७-१२०० |
केशीदेव द्वितीय | १२००-१२४५ |
अनंतदेव तृतीय | १२४५-१२५५ |
सोमेश्वर | १२५५-१२६५ |
दक्षिण कोकणचे शिलाहार
दक्षिण कोकणचे शिलाहार हे सध्याच्या रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग, गोवा इ. दक्षिणी कोकण प्रदेशात राज्य करत होते. त्यांची राजधानी वलीपट्टण म्हणजेच आत्ताचे रत्नागिरी जिल्ह्यातील राजापुर होय. सणफुल्ल हा यांचा मूळपुरुष होता.
दक्षिण कोकणचे शिलाहार शासक
शासक | कालखंड (इ.स.) |
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सणफुल्ल | ७६५-७९५ |
धम्मियर | ७९५-८२० |
ऐयपराज | ८२०-८४५ |
अवसर प्रथम | ८४५-८७० |
आदित्यवर्मा | ८७०-८९५ |
अवसर द्वितीय | ८९५-९२० |
इंद्रराज | ९२०-९४५ |
भीम | ९४५-९७० |
अवसर तृतीय | ९७०-९९५ |
रठ्ठराज | ९९५-१०२० |
कोल्हापूरचे शिलाहार
कोल्हापूरचे शिलाहार हे सध्याच्या कोल्हापूर, सांगली, सातारा, बेळगाव इ. प्रदेशांवर राज्य करत होते. त्यांची राजधानी वळीवडे (वळवडे /राधानगरी), कोल्हापूर, प्रणालक (पन्हाळा) या ठिकाणांवर होती. जतिग हा त्यांचा मूळ पुरुष होता.
कोल्हापूरचे शिलाहार शासक
शासक | कालखंड(इ.स.) |
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जतिग प्रथम | ९४०-९६० |
न्यायवर्मा | ९६०-९८० |
चंद्र | ९८०-१००० |
जतिक द्वितीय | १०००-१०२० |
गोंक | १०२०-१०५० |
गुहल प्रथम | - |
कीर्तिराज | - |
चंद्रादित्य | - |
मारसिंह | १०५०-१०७५ |
गुहल द्वितीय | १०७५-१०८५ |
भोज प्रथम | १०८५-११०० |
बल्लाळ | ११००-११०८ |
गोंक द्वितीय | - |
गंडारादित्य प्रथम | ११०८-११३८ |
विजयादित्य प्रथम | ११३८-११७५ |
भोज द्वितीय | ११७५-१२१२ |
लय
देवगिरीचे चक्रवर्ती सिंघणदेव महाराज यांनी शिलाहारांचा पराभव केला.
शिलाहारांवरील मराठी पुस्तके
- शिलाहार कालीन नगरी दिवे आगर (निर्मला गोखले)